पीठ ( back ) और घुटने ( knee ) का पीड़ा
कारण
- पीठ ( back ) या घुटने ( knee ) में चोट
- आमवात
- संगठित चोटें
- रजोनिवृत्ति
- शिराओं का संपीड़न
- व्यवसाय उन्मुख: निरन्तर खड़े रहना या बैठना
लक्षण
- बैठने/काम करने/चलने के दौरान पीठ ( back ) और घुटने ( knee ) में तेज पीड़ा
- स्थिति बदलने में मुसीबत
- पीठ ( back ) में भारीपन
- टांगों में सुन्नपन
- सोने की गलत पोजीशन
आमवात और आमवात
कारण
- पुष्टिकारक तत्वों की अभाव (कैल्शियम। विटामिन ( vitamin ) डी)
- रजोनिवृत्ति
- आयु बढ़ने
- ज्यादा भार
- आमवात का पारिवारिक हिस्ट्री
लक्षण
- जॉइंट्स के पीड़ा के साथ थकान
- जॉइंट्स की लालिमा और स्वेलिंग
- जॉइंट्स का अकड़ना
- कठिन चलना
- मांसपेशियों ( muscles ) में निर्बलता
Name | केरल आयुर्वेद ( ayurveda ) दशमूलारिष्टम (435 मि.ली.) |
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Brand | केरल आयुर्वेद ( ayurveda ) |
MRP | ₹ 154 |
Category | आयुर्वेद ( ayurveda ), आसव अरिष्ट और कढाई |
Sizes | 435 मिली |
Prescription Required | No |
Length | 0 सेंटिमीटर |
Width | 0 सेंटिमीटर |
Height | 0 सेंटिमीटर |
Weight | 0 ग्राम |
Diseases | पीठ ( back ) और घुटने ( knee ) का पीड़ा, आमवात और आमवात |
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केरल आयुर्वेद ( ayurveda ) दशमूलारिष्टम के बारे में
दशमूलारिष्टम को दशमूलारिष्टम के रूप में भी लिखा जाता है, यह एक आयुर्वेदिक द्रव औषधि है जिसका इस्तेमाल सेहत टॉनिक और पीड़ा निरोधक के रूप में किया जाता है। इसमें 3 से 7% सेल्फ-जेनरेटिंग शराब होता है क्योंकि यह जड़ी-बूटियों के किण्वन के साधन से तैयार किया जाता है। यह जीवन शक्ति प्रोवाइड करता है और निर्बलता को कम करता है। यह स्त्री विकृतियों के लिए भी बहुत लाभदायक है और स्त्रियों को इष्टतम सेहत बनाए रखने में सहायता करता है। स्त्रियों में, यह आमतौर पर प्रसवोत्तर प्रॉब्लम्स की बचाव के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें गर्भाशय, यूरिनरी ब्लैडर और गुर्दे के संक्रामक बीमारी, पीठ ( back ) पीड़ा, थकान, पेरिनियल प्रदेश का पीड़ा, अलावा निर्वहन, प्रसवोत्तर डिप्रेशन, सुस्त गर्भाशय, सूजे हुए ब्रेस्ट आदि शामिल हैं। मांसपेशियों ( muscles ), अस्थियों और स्नायुबंधन को ताकत देता है और इम्युनिटी में इम्प्रूवमेंट करता है। इस कारण से यह भारत में स्त्रियों के लिए प्रसिद्ध हो जाता है और यह प्रसवोत्तर प्रॉब्लम्स के लिए एक साधारण इलाज बन जाता है।
केरल आयुर्वेद ( ayurveda ) दशमूलारिष्टम की मटेरियल
- बिल्व (बेल) - एगल मार्मेलोस - जड़ / तना छाल
- श्योनका (ऑरोक्सिलम इंडिकम) - जड़ / तना छाल
- संजीदा (गमेलिनार बोरिया) - जड़ / तना छाल
- पाताल (स्टीरियोस्पर्मम सुवेओलेंस) - जड़ / तना छाल
- अग्निमंथा (प्रेमना म्यूक्रोनाटा) - जड़ / तना छाल
- शालापर्णी (डेस्मोडियम गैंगेटिकम) - जड़/पूरा पौधा
- प्रष्णपर्णी (उररिया छबि) - जड़/पूरा पौधा
- बृहति (सोलनम इंडिकम) - जड़ / पूरा पौधा
- कांतकारी (सोलनम ज़ैंथोकार्पम) - जड़ / पूरा पौधा
- गोक्षुरा (ट्रिबुलस) - ट्रिब्युलस टेरेस्ट्रिस- जड़ / पूरा पौधा
- चित्रक (प्लम्बेगो ज़ेलेनिका) - जड़
- पुष्करमूल (इनुला रेसमोसा) – जड़
- लोधरा (सिम्प्लोकोस रेसमोसा) - तने की छाल / जड़
- गिलोय (इंडियन टीनोस्पोरा) – तना
- आंवला (इंडियन आंवला) - फल
- दुरालभा (फागोनिया क्रेटिका) - पूरा पौधा
- खदीरा (बबूल केचू) - हृदय की लकड़ी
- बीजासरा (पेरोकार्पस मार्सुपियम) - हृदय की लकड़ी
- हरड़ (टर्मिनलिया चेबुला) - फल
- कुश्त (सौसुरिया लप्पा) - जड़
- मंजिष्ठा (रूबियाक ऑर्डिफोलिया) - जड़
- देवदरु (सेड्रस देवदरा) - हृदय की लकड़ी
- विदंगा (एम्बेलिया पसली) – फल
- मुलेठी (नद्यपान) – जड़
- भरंगी (क्लेरोडेंड्रम सेराटम) - जड़
- कपिथा (फेरोनियाली अनेक) - फलों का पाउडर
- बिभीटक (टर्मिनली एबेलिरिका) - फल
- पुनर्नवा (बोरहविया डिफ्यूसा) - जड़
- छव्य (पाइपर रेट्रोफ्रैक्टम) - तना
- जटामांसी (नॉर्डोस्टाचिस जटामांसी) – राइजोम
- प्रियंगु (कैलिकारपामा क्रोफिला) - फूल
- सरिवा (हेमाइड्समस इंडिकस) - रूट
- कृष्ण जीरक (कारम कार्वी) - फल
- त्रिवृत (ऑपरकुलिना टरपेथम) – जड़
- निर्गुंडी (विटेक्स नेगुंडो) - बीज
- रसना (Pluchea lansolata) - पत्ता
- पिप्पली (लंबी मिर्च) - फल
- पुगा (सुपारी) – बीज
- शती (हेडिचियम स्पाइकेटम) – प्रकंद
- हरिद्रा (हल्दी) – प्रकंद
- Shatapushpa (Anethum sowa) – Fruit
- पद्मका (प्रूनस सेरासाइड्स) - तना
- नागकेसरा (मेसुआ फेरिया) – स्टैमेन
- मुस्टा (साइपरस रोटंडस) – प्रकंद
- इंद्रायव (होलरहेना एंटीडिसेंटरिका) - बीज
- करकट श्रृंगी (पिस्ता इंटिग्ररिमा) - गैल
- जीवाका (मलैक्सिस एक्यूमिन्टा) - जड़
- ऋषभका (Microstylis Wallichii) - जड़
- मेडा (बहुभुज वर्टिसिलैटम) - जड़
- महामेदा (बहुभुज सिरिफोलियम) - जड़
- काकोली (रोस्कोआ प्रोसेरा)
- क्षीर काकोली (लिलियम पोल्फिलम डी.डॉन) - जड़
- Rddhi (हैबेनेरिया एडगेवर्थी एचएफ)
- वृद्धि (हैबेनेरिया इंटरमीडिया डी.डॉन सिन।) - रूट
- काढ़े के लिए जल
- द्राक्ष (किशमिश) - सूखे मेवे
- मधु
- गुडा (गुड़)
- धातकी (वुडफोर्डिया फ्रुटिकोसा) - फूल
- कंकोला (पाइपर क्यूबबा) - फल
- नेत्रबाला (कोलियस वेटिवरोइड्स) - जड़
- स्वेत चंदना (संतालुम एल्बम) - हृदय की लकड़ी
- जतिफला (मिरिस्टिका सुगंध) – बीज
- लवंगा (लौंग) - फूल की कली
- Tvak (Cinnamon) – Stem bark
- इला (इलायची) – बीज
- पात्रा (दालचीनी तमाला) – पत्ता
- कटका फला (स्ट्राइकनोस पोटैटोरम) - बीज
केरल आयुर्वेद ( ayurveda ) दशमूलारिष्टम के इलाज इशारा
दशमूलारिष्ट (दशमूलारिष्ट) निम्नलिखित सेहत परिस्थितियों में मददगार है।
स्त्री सेहत
- कष्टार्तव (माहवार धर्म में मरोड़)
- बारम्बार होनेवाला गर्भपात
- श्रोणि स्वेलिंग की रोग
- पीठ ( back ) पीड़ा
- गर्भाशय की सुस्ती
- पेरिनियल पीड़ा
- सूजे हुए ब्रेस्ट
- गर्भाशय के इनफ़ेक्शन और प्रसवोत्तर समस्याओं की बचाव के लिए
- प्रसवोत्तर थकान
- प्रसवोत्तर भूख में अभाव
- ब्राह्मी (बकोपा मोननेरी) के साथ प्रसवोत्तर डिप्रेशन (बेबी ब्लूज़)
- प्रसवोत्तर निर्बलता
- प्रेग्नेंसी ( pregnency ) के बाद खून की कमी
ब्रेन और नसें
- शिराओं का पीड़ा
- साइटिका
- मांसपेशियों ( muscles ), अस्थियों और जॉइंट्स
मांसपेशी ( muscle ) में मरोड़
- कम पीठ ( back ) पीड़ा
- रूमेटाइड आमवात
हाज़मा सेहत
- भूख में अभाव
- खट्टी ( sour ) डकार ( belching )
- गैस
- चिड़चिड़ा आंत सिंड्रोम ( syndrome ) (IBS) - संभवतया ही कभी उपयोग किया जाता है
- जॉन्डिस
- धन
फेफड़े ( lungs ) और वायुपथ
- निरन्तर कफ (VATAJ KASH)
वयस्क पुरुषों का सेहत
- वीर्य में मवाद के कारण पुरुष ( male ) बांझपन।
प्रसवोत्तर अवधि
आयुर्वेद ( ayurveda ) में, दशमूलारिष्टम एक जरूरी औषधि है जिसका इस्तेमाल सब के सब प्रसवोत्तर समस्याओं के प्रबंधन में किया जाता है। प्रसव के बाद इसके नित्य इस्तेमाल से निम्नलिखित फायदा होते हैं।
भूख में अभाव
अधिकतर स्थितियों में, प्रसव के बाद भूख न लगना और बदहजमी की प्रॉब्लम ( problem ) होती है। अपने हाज़मा उत्तेजक गुण के कारण, दशमूलारिष्ट भूख में इम्प्रूवमेंट करता है और प्रसवोत्तर अवधि में बदहजमी का उपचार करने में सहायता करता है।
प्रसवोत्तर ज्वर
कुछ स्त्रियों को ज्वर भी होता है, जो निम्न श्रेणी और हाई श्रेणी का हो सकता है। दशमूलारिष्टम दोनों तरह से लाभकारी है। तेज़ ज्वर में, दशमूलारिष्ट संक्रामक रोगाणुओं से लड़ने में सहायता करता है और आकुलता ( बेचैनी ), सरदर्द, डिस्चार्ज ( discharge ), पीड़ा आदि जैसे लक्षणों की तीव्रता को कम करता है। कृपया ( kindly ) ध्यान दें कि इनफ़ेक्शन से लड़ने के लिए मरीज को और औषधियों की जरूरत हो सकती है। आजकल, एंटीबायोटिक ( antibiotic ) औषधियों का इस्तेमाल किया जाता है। प्राचीन भारत में, दशमूलारिष्टम और मधुरंतक वटी, प्रवल पिष्टी ही उपलब्ध ऑप्शन ( option ) थे।
प्रसवोत्तर डायरिया और IBS
यद्यपि, यह बहुत कम होता है, लेकिन कुछ स्त्रियों को प्रसव के बाद दस्त या आईबीएस हो जाता है। ऐसी स्थिति में, अपने हल्के कसैले प्रभाव ( effect ) के कारण अकेले दशमूलारिष्टम सहायता कर सकता है।
दैहिक निर्बलता
दशमूलारिष्टम में कुछ जड़ी-बूटियाँ होती हैं, जो जीवन शक्ति प्रोवाइड करती हैं और दैहिक शक्ति में इम्प्रूवमेंट करती हैं। प्रसव के दौरान वजनी दैहिक थकावट ( exhaustion ) के बाद, यह पीड़ा, दैहिक तनाव से आराम प्रोवाइड करता है और जॉइंट्स, मांसपेशियों ( muscles ) और स्नायुबंधन को सहारा देता है।
प्रसव के बाद कम पीठ ( back ) पीड़ा
अनेक स्त्रियों को डिलीवरी के बाद कटि ( कमर ) पीड़ा की कष्ट रहती है। कुछ स्थितियों में, पीठ ( back ) में अकड़न भी जुड़ी होती है। ऐसी स्थिति में अश्वगंधा के अर्क के साथ दशमूलारिष्टम ज्यादा लाभकारी होता है।
इम्युनिटी में इम्प्रूवमेंट
दशमूलारिष्ट कुछ इम्युनोमोड्यूलेटर जड़ी बूटियों की मौजूदगी के कारण इम्युनिटी में भी इम्प्रूवमेंट करता है। यदि इसे प्रसव के फ़ौरन बाद शुरू किया जाता है, तो यह प्रसवोत्तर अवधि में या उसके बाद होने वाली करीब-करीब 90% सेहत प्रॉब्लम्स को कम करता है।
बारम्बार होनेवाला गर्भपात
आयुर्वेद ( ayurveda ) के अनुरूप ( accordingly ), भ्रूण को ठीक से प्रत्यारोपित करने में गर्भाशय की अक्षमता के कारण बार-बार गर्भपात होता है। यह गर्भाशय की मांसपेशियों ( muscles ) की निर्बलता के कारण होता है। अनेक चिकित्सक और मरीज़ अनुभव करते हैं कि अनेक स्त्रियों में बार-बार होने वाले गर्भपात का कोई दृष्टि या विवरण योग्य कारण नहीं होता है। सब के सब की विवरण नॉर्मल है। ऐसे केस में, उपरोक्त कारण सबसे उचित है। ऐसे केस में, दशमूलारिष्टम के साथ निम्नलिखित सम्मिश्रण अच्छी तरह से सहायता करता है।
ध्यान दें
उपरोक्त सूत्रीकरण में अश्वगंधा पाउडर शामिल है, जो कुछ स्त्रियों में भार बढ़ा सकता है। यह दुबली स्त्रियों के लिए बहुत बढ़िया होता है। यद्यपि बार-बार होने वाले गर्भपात को ठीक करने के लिए अश्वगंधा का सेवन बहुत आवश्यक है। यदि आपका भार पहले से ही ज्यादा है, तो आप इसकी मात्रा ( quantity ) को दिन में दो बार 500 मिलीग्राम ( mg ) तक कम कर सकते हैं।
केरल आयुर्वेद ( ayurveda ) दशमूलारिष्टम के लिए डोज़
12 - 24 मिली। दिन में एक या दो बार, आमतौर पर आहार ( food ) के बाद परामर्श दी जाती है। यदि अनिवार्य हो, तो खपत से पहले जल की समान मात्रा ( quantity ) में जोड़ा जा सकता है। बार-बार डोज़ में भी लिया जा सकता है।
केरल आयुर्वेद ( ayurveda ) दशमूलारिस्तम के लिए सतर्कता
तथापि, दशमूलारिष्टम के कुछ असमानता हैं और यदि ऐसी परिस्थितियों में इसका इस्तेमाल किया जाता है, तो यह प्रॉब्लम ( problem ) को और बुरा कर सकता है। यहाँ इसके contraindications हैं।
- मुँह में अल्सर ( ulcer )
- आमाशय में दाह महसूस होना
- आमाशय में दाह
- बहुत तृष्णा
- दाह के साथ अतिसार
उपरोक्त सब के सब लक्षणों में आपको दशमूलारिष्टम का उपयोग नहीं करना चाहिए। ऐसे स्थितियों में, सबसे बढ़िया ऑप्शन ( option ) जीराकारिष्तम है। यह इन लक्षणों वाले लोगों में करीब-करीब समान फायदा प्रोवाइड करता है।