फ्लू ( flu ) और ज्वर
कारण
- विषाणु इनफ़ेक्शन
- बैक्टीरिया इनफ़ेक्शन
- यकायक ठंडी सूखा हवाओं के कांटेक्ट में आना
- कम इम्युनिटी
लक्षण
- बॉडी ( body ) में पीड़ा और शीत लगना
- बहुत थकान/निर्बलता
- भूख में अभाव
- घुमेरी ( dizziness ) आना
- मांसपेशियों ( muscles ) और जॉइंट्स का पीड़ा
- कफ, बलगम के साथ कफ
- कंठनली में खरास
- सरदर्द
दमा
कारण
- एक एलर्जेन, अड़चन के कांटेक्ट में। वायु में प्रदूषक
- तनाव
- बार-बार प्रतिश्याय ( जुकाम ) जो छाती में बस जाता है
- बारम्बार होनेवाला शीत और कफ का हिस्ट्री एलर्जिक राइनाइटिस
- आनुवंशिक पूर्व स्वभाव के साथ पारिवारिक हिस्ट्री
लक्षण
- कसरत के दौरान लेटते अवधि ( समय ) या हंसते अवधि ( समय ) रात्रि में खाँसी ( cough )
- छाती में अकड़न के साथ सांस लेने में कष्ट
- साँसों की अभाव
- सांस लेते अवधि ( समय ) आवाज के साथ घरघराहट
- कफ, बलगम के साथ सूखी या खाँसी ( cough )
Name | Baidyanath Mrityunjay Ras (40tab) |
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Other Names | Mrityunjaya Ras |
Brand | Baidyanath |
MRP | ₹ 50 |
Category | आयुर्वेद ( ayurveda ), रास और सिंदूर |
Sizes | 40टैब |
Prescription Required | No |
Length | 3.7 सेंटिमीटर |
Width | 3.7 सेंटिमीटर |
Height | 5.8 सेंटिमीटर |
Weight | 16 ग्राम |
Diseases | फ्लू ( flu ) और ज्वर, दमा |
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मृत्युंजय रासु के बारे में
मृत्युंजय जूस टैबलेट ( tablet ) के रूप में एक आयुर्वेदिक दवा है। इसका इस्तेमाल सब के सब तरह के ज्वर के ट्रीटमेंट ( treatment ) में किया जाता है। इस औषधि में वजनी धातु मूल तत्व होते हैं, इसलिए इसे केवल सख्त औषधीय निगरानी में ही लेना चाहिए
मृत्युंजय रसो की मटेरियल
वत्सनाभ - आने वाले ज्वर को ठीक करने के लिए गंधक, सोया, दालचीनी और और मसालों से भरा सुगंधित चीजों की सहायता से आधा ( half ) चावल बराबर मात्रा ( quantity ) में देने से ज्वर ठीक हो जाता है। जो भी आदमी मूत्र बंद नहीं करता है, या यदि वह इससे दुःखित है, तो उसे आधे चावल का सेवन करना चाहिए। शीत के ज्वर में आने वाले ज्वर में थोड़ी मात्रा ( quantity ) में कठिनाई दी जाती है। हर तरह के पीड़ा को जा सकता है दूर वत्सनाब के तेल से किया । इसके अतिरिक्त आमवात और स्मॉल जॉइंट्स की स्वेलिंग में लगाने से फायदा होता है। सिथिका, आमवात (घुटने ( knee ) का पीड़ा), टिटनेस (बॉडी ( body ) में खरोंच पड़ना), इसे बहुत कम मात्रा ( quantity ) में देने से फायदा होता है।
गंधक - शुद्ध ( pure ) और संसाधित सल्फर - यह हर्बल मटेरियल में शुद्ध ( pure ) सल्फर को संसाधित करके तैयार किया जाता है। सल्फर/सल्फर को संस्कृत और हिंदी में गंधक के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इसकी तेज अजीबोगरीब सड़े हुए अंडे जैसी स्मेल होती है। यह प्रकृति में पाया जाने वाला एक अधात्विक मूल तत्व है। सल्फर की चार किस्में होती हैं। लाल, पीला, श्वेत और काला। इनमें से लाल और काला अब उपलब्ध नहीं हैं। पीली किस्म का इस्तेमाल अंदरूनी इस्तेमाल के लिए किया जाता है और श्वेत कलर का इस्तेमाल सामयिक अनुप्रयोग के लिए किया जाता है।
पारद - शुद्ध ( pure ) और संसाधित पारा - इम्युनिटी पद्धति को प्रोत्साहन देने के लिए, शक्ति में इम्प्रूवमेंट करने के लिए, हार्ट बिमारियों में, आमाशय का पीड़ा, पेशाब पथ से रिलेटेड बीमारी, एनो में फिस्टुला, स्वेलिंग की स्थिति, तपेदिक, क्रोनिक सांस की स्थिति, दमा, खून की कमी, मोटापा, गैर में इस्तेमाल किया जाता है। ज़ख्म भरने, और हाज़मा समस्याओं।
टंकन - यह आमाशय की कष्ट, स्किन बीमारी, आँख डिसऑर्डर, स्वेलिंग, स्प्लेनोमेगाली, कृमि बीमारी, मोटापा, डायबिटीज, मतली, दमा, ब्रोंकाइटिस ( श्वसनीशोथ ), फंगल इन्फेक्शन, आमाशय का पीड़ा, क्रोनिक सांस की रोग, लीवर ( liver ) डिसऑर्डर, पाईल्स ( बवासीर ), फिस्टुला, क्रोनिक रोगों में सहायक है। कमजोरी, मांसपेशियों ( muscles ) की बर्बादी, घुमेरी ( dizziness ) आना, भ्रम।
हिंगूल - यह एक उत्कृष्ट कायाकल्प, बुढ़ापा रोधी औषधि है। यह दाह से आराम देता है, स्मरणशक्ति नुक्सान, घुमेरी ( dizziness ) आना, बहुत तृष्णा, डायबिटीज, कैशेक्सिया, ऊतक बर्बादी, पेशाब डिसऑर्डर, मदिरा, जहर, ज्वर, गर्भाशय डिसऑर्डर, मिरगी ( epilepsy ) के उपचार में इस्तेमाल किया जाता है।
मारीच - मारीच विषाक्त परिस्थितियों को दूर करता है, अंगों को उत्तेजित ( excited ) करता है और अनेक सेहत दोषों को ठीक करता है। यह कीड़े के काटने के लिए एक मारक के रूप में भी उपयोग किया जाता है। मारीच तीखा, पचने में हल्का, बहुत ताकतवर होता है जो बॉडी ( body ) की गहरी और सूक्ष्म नलिकाओं में प्रवेश करने के लिए जाना जाता है और अपनी उष्ण शक्ति के लिए जाना जाता है। इसका इस्तेमाल बॉडी ( body ) में वात और कफ, बलगम त्रुटि को बैलेंस्ड करने के लिए किया जाता है। फल, सूखे कच्चे फल ओ का इस्तेमाल मसाले के रूप में या औषधियों में किया जाता है।
पीपली - पिप्पली में तीखा जूस और मीठा विपाक होता है। इसका वीर्य अनुनाशिता है - न उष्ण और न ही शीतल, एक ऐसा फैक्ट ( fact ) जो इसे पित्त के लिए अमूल्य बनाता है। इसमें वाष्पशील तेल, एल्कलॉइड्स पिपेरिन और पाइपरलोंग्युमिनिन, टेरपेनोइड्स और एन-आइसोबुटिल डेका-ट्रांस-2-ट्रांस-4-डायनामाइड, एक मोमी अल्कलॉइड होता है। पिप्पली श्वसन ( respiration ) पथ, प्राणवाहस्त्रोतों के श्रोतो-अग्नि को नियंत्रित करता है। यह ब्रोन्कोडायलेटर, डिकॉन्गेस्टेंट, एक्सपेक्टोरेंट और फेफड़ों के कायाकल्प के रूप में काम करता है। अन्नवाहास्त्रोतों में, हाज़मा तंत्र, इसमें वातहर और दीपन (अग्नि प्रज्वलित) के रूप में शक्तिशाली क्रियाएं भी होती हैं। पिप्पली लीवर ( liver ) में भुटाग्नि को प्रज्वलित करता है, लीवर ( liver ) के काम में इम्प्रूवमेंट करता है, और एक चयापचय उत्तेजक है, थायरॉइड ( thyroid ) हॉर्मोन के स्तर को बढ़ाकर थर्मोजेनिक रिएक्शन की मदद करता है।
जाम्बिरी निम्बू स्वर - नींबू का इस्तेमाल स्कर्वी के उपचार के लिए किया जाता है, यह एक ऐसी स्थिति है जो पर्याप्त नहीं होने के कारण होती विटामिन ( vitamin ) सी है । नींबू का इस्तेमाल साधारण शीत और फ्लू ( flu ) , H1N1 (स्वाइन) फ्लू ( flu ) , कानों में बजना ( टिनिटस ), मेनियर बीमारी और गुर्दे की पथरी के लिए भी किया जाता है । इसका इस्तेमाल हाज़मा में मदद, पीड़ा और स्वेलिंग ( स्वेलिंग ) के काम में इम्प्रूवमेंट करने ब्लड को कम करने, वाहिकाओं और तरल धारण को कम करने के लिए मूत्र को बढ़ाने के लिए भी किया जाता है।
मृत्युंजय रसो के इशारा
ज्वर हटानेवाल
स्वेदजनक
एनोडाइन और मूत्रवर्धक, पेशाब बढ़ाने वाला
शिराओं का पीड़ा और नर्व रिलेटिव परिस्थितियां
एक्यूट गाउट
न्यूमोनिया
टॉन्सिल्लितिस
ज्वर
ज्वर पर मृत्युंजय जूस की मेडिसिनल क्रिया
- इसका इस्तेमाल ज्वर के ट्रीटमेंट ( treatment ) में किया जाता है।
- सब के सब तरह के ज्वर में इसे मधु ( honey ) के साथ दिया जाता है।
- वात तरह के ज्वर में, बॉडी ( body ) में पीड़ा होने पर इसे दही के जल वाले हिस्से के साथ दिया जाता है।
- जीर्ण ज्वर में त्रिदोष से प्रभावित होने पर इसे जिंजर ( ginger ) के जूस के साथ दिया जाता है।
- बदहजमी से जुड़े ज्वर में इसे नींबू के जूस के साथ दिया जाता है।
- इंटरमिटेंट ज्वर (विशामजवाड़ा) में इसे जीरा और गुड़ के साथ दिया जाता है।
- हाल के ज्वर के केस में, और पूरे बॉडी ( body ) में संजीदा दाह के साथ वात और पित्त की प्रबलता के साथ ज्वर में, इसे मिश्री, और नरम नारियल जल के साथ प्रबंधित किया जाता है।
मृत्युंजय रसो की डोज़
एक से दो टेबलेट्स ( tablets ), दिन में एक या दो बार, आहार ( food ) से पहले या बाद में या आयुर्वेदिक डॉक्टर के निर्देशानुसार।
मृत्युंजय रसो की सतर्कता
- इस औषधि के साथ स्व-औषधि जोखिमभरा साबित हो सकती है, क्योंकि इसमें पारा घटक के रूप में होता है।
- इस औषधि को चिकित्सक की परामर्श के अनुरूप ( accordingly ) सटीक ( exact ) मात्रा ( quantity ) में और सीमित अवधि ( समय ) के लिए ही लें।
- ज्यादा डोज़ से संजीदा जहरीला प्रभाव ( effect ) हो सकता है।
- प्रेग्नेंसी ( pregnency ), स्तनपान ( breastfeeding ) और शिशुओं में इससे बचना सबसे बढ़िया है।
- शिशुओं की पहुंच और नजर से दूर रखें।
- सूखी ठंडी जगह पर स्टोर ( store ) करें।