बदहजमी/अम्ल/गैस
कारण
- खा
- चिंता ( anxiety )
- लगातार व्रत
- मसालों से भरा आहार ( food ) का ज्यादा सेवन
- पीड़ा निरोधक एंटीबायोटिक्स ( antibiotics ) अम्लता ( खट्टापन ) का कारण बन सकते हैं
लक्षण
- ऊपरी आमाशय में आकुलता ( बेचैनी )
- आमाशय पीड़ा और परिपूर्णता की मनोवृत्ति
- उल्टी
- मतली के एपिसोड
- स्वेलिंग की अनुभूति
कफ
कारण
- विषाणुजनित इनफ़ेक्शन
- प्रदूषकों के कांटेक्ट और एलर्जी ( allergy ) की रिएक्शन
- फेफड़ों के जीर्ण बीमारी
- दाह या कंठनली में इनफ़ेक्शन
- शीत और फ्लू ( flu )
- एलर्जिक राइनाइटिस और साइनोसाइटिस
- हृदय से रिलेटेड वेंट्रिकल या वाल्व की समस्या
लक्षण
- कफ, बलगम के साथ खाँसी ( cough ) या सूखी खाँसी ( cough )
- खांसते अवधि ( समय ) छाती में पीड़ा
- दाह के साथ कंठनली का लाल होना
- सांस लेने में कष्ट
- निरन्तर गला साफ करना
- खांसने के कारण आमाशय में पीड़ा
Name | धूतपापेश्वर कपार्डिका भस्म (10 ग्राम) |
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Brand | Dhootapapeshwar |
MRP | ₹ 75 |
Category | आयुर्वेद ( ayurveda ), Bhasm & Pishti |
Sizes | 10 ग्राम |
Prescription Required | No |
Length | 0 सेंटिमीटर |
Width | 0 सेंटिमीटर |
Height | 0 सेंटिमीटर |
Weight | 0 ग्राम |
Diseases | बदहजमी/अम्ल/गैस, कफ |
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कपर्दक भस्म (वर्तिका भस्म) के बारे में
आयुर्वेद ( ayurveda ) में कौड़ी को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे वरता, वराटिका, कापर्दिक, कपर्दिका इत्यादि वे प्रमुख रूप से लाल, श्वेत और पीले कलर के बुनियाद पर तीन तरह के होते हैं। जिसके नजदीक पीले कलर का कलर, पीठ ( back ) पर नोड्यूल और आकृति में अंडाकार होता है उसे वरातिका कहा जाता है और मेडिसिनल प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कौड़ी आमतौर पर भारत के तटीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले समुद्री जानवर साइप्रिया मोनेटा (आमतौर पर मनी कौड़ी के रूप में जाना जाता है) के बाहरी खोल को संदर्भित करता है। -प्रशांत समुद्र। प्राचीन काल में कौड़ियों का इस्तेमाल धन के रूप में किया जाता था। इनका इस्तेमाल आभूषण बनाने में भी किया जाता है। केमिकल ( chemical ) रूप से, यह कैल्शियम ( calcium ) का कार्बोनेट है। आयुर्वेद ( ayurveda ) में, वरातिका का इस्तेमाल कौड़ियों के कैल्सीनेशन द्वारा प्राप्त पाउडर के रूप में किया जाता है। इसे कापर्दिका या वर्तिका भस्म के नाम से जाना जाता है। यह जानवर मूल की खनिज दवा है। इसमें एंटासिड, परिवर्तनकारी, मूत्रवर्धक, पेशाब बढ़ाने वाला, दस्त रोधी, पाचक और कफ, बलगम निस्सारक गुण होते हैं। कपर्दक भस्म का इस्तेमाल बदहजमी, बदहजमी, आमाशय पीड़ा, पेप्टिक अल्सर ( ulcer ), स्प्रू सिंड्रोम ( syndrome ), आंतों के तपेदिक, मोतियाबिंद, ओटोरिया, बढ़े हुए प्लीहा, लीवर ( liver ), दमा के ट्रीटमेंट ( treatment ) में किया जाता है। और खांसी। यह बाहरी रूप से भिन्न-भिन्न तरह के मलहमों में कास्टिक के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
Ingredients of Kapardaka Bhasm
- Kapardaka
- Lemon juice (Nimbu ka ras)
- जल
कपर्दक भस्म के इस्तेमाल:
- हाज़मा उत्तेजक
- एंटासिड
- पीड़ा-नाशक
- antispasmodic
- कामिनटिव
- वमनरोधी
- आम पचक (डिटॉक्सिफायर)
- एंटीफ्लैटुलेंट
- एंटीअल्सरोजेनिक
- म्यूकोलाईटिक
- स्तम्मक
कपर्दक भस्म के इलाज इशारा
- आमाशय में पीड़ा
- स्वेलिंग
- आमाशय फूलना
- ग्रहणी फोड़ा
- भूख में अभाव
- सेंसिटिव आंत्र की रोग
- मुँह का खट्टा स्वाद ( taste )
- बदहजमी (बदहजमी)
- कपर्दक भस्म के इस्तेमाल और फायदा
कपर्दक भस्म की डोज़
- 250 मिलीग्राम ( mg ) से 500 मिलीग्राम ( mg ) दिन में दो बार।
- नींबू के जूस या घी या मधु ( honey ) के साथ अवश्य लेना चाहिए।
कपर्दक भस्म की सतर्कता
- यह औषधि केवल सख्त औषधीय निगरानी में ही ली जानी चाहिए।
- इस औषधि के साथ स्व-औषधि जोखिमभरा साबित हो सकती है।
- ज्यादा डोज़ के संजीदा दुष्प्रभाव ( side effect ) हो सकते हैं।
- प्रेग्नेंसी ( pregnency ), स्तनपान ( breastfeeding ) और शिशुओं में इसका बहुत एहतियात से इस्तेमाल किया जाना चाहिए, केवल तभी जब अवधारित डॉक्टर द्वारा बहुत अनिवार्य पाया गया हो।
- इस औषधि को चिकित्सक की परामर्श के अनुरूप ( accordingly ) सटीक ( exact ) मात्रा ( quantity ) में और सीमित अवधि ( समय ) के लिए ही लें।
- शिशुओं की पहुंच और नजर से दूर रखें।
- सूखी ठंडी जगह पर स्टोर ( store ) करें।